लाल चूजे ने काला अंडा तोड़ दिया, और भोर हो गयी थी |पेड़ो की फुनगियों परउगते नए गुलाबी खिलौने को देख चिड़ियों के बच्चे कलरव करने लगे थे | उनींदीहवाओं को झकझोरती हुई ट्रेन पूरी रफ्त्तार से भागी जा रही थी | ट्रेन की जोखिड़कियाँ खुली हुई थी उनसे झांक कर सूरज ने सुबह होने का एलान कर दियाथा |पर शायद प्रशांत ने इसे अनसुना कर दिया| पांव में लिपटे चादर को खींच करउसने अपने मुंह को ढक लिया ,मानो इस चादर के सहारे वह इस सुबह को होने सेरोक देगा , और शायद उस सुबह को भी.....
" सुबह हो गयी है...." एक कड़कती आवाज वायरलेस सेट पर गूंजती है | " गाँवकी घेराबंदी की जा चुकी है , और जैसा कि आपको ब्रीफ किया गया था फर्स्ट लाइटके साथ हमारा सर्च आपरेशन शुरू होगा " | ..."प्रशांत ...!" पैरों में हलकी झुरझुरीसे चादर सरक कर मुंह के नीचे आ गया , प्रशांत ने अनमने ढंग से उसे फिर सेखींच कर सर के नीचे दबा लिया | ...."प्रशांत ....! , आप सर्च पार्टी के कमांडर है ,बी अलर्ट एंड गुड लक...नाऊ मूव" | वायरलेस चुप हो गया | प्रशांत को लगा जैसेउसे थूक निगलने में परेशानी हुई हो |.... " यह दो हिस्सों में बंटा एक बड़ा गाँव है, इसलिए हम दो सर्च पार्टी बनायेंगे " प्रशांत की आवाज धीरे धीरे स्थिर हो रही थी| " पहली पार्टी गाँव के बाएं हिस्से में सर्च करेगी और दूसरी पार्टी दाहिने हिस्से में, पहली पार्टी के साथ मै रहूँगा और दूसरी पार्टी के साथ रेहान तुम रहोगे " | "यससर " रेहान चुप था पर उसके सावधान होने में प्रशांत ने यही सुना था | " सर्चकरने का तरीका आपको पहले ही बताया जा चुका है , रेहान तुम अपनी पार्टी कोले कर अब मूव करो ...एंड टेक केयर ....| आख़री दो शब्द शायद प्रशांत ने अपने आप से कहे थे | दोनों पार्टियाँ अलग अलग दिशाओं में शिथिल क़दमों से चलने लगी | तीन दिनों की कड़ी मिहनत से थके हारे इन फौजिओं पर शायद हवाओं को भी तरस आ रहा था | अपने शीतल स्पर्श से वो इनकी सारी थकावट हर लेना चाहती थी | पर शायद उसे यह पता नहीं था कि यह स्पर्श उन फौजिओं को नींद के आगोश में ले जायेगा, जहाँ जाने की उन्हें अभी इजाजत नहीं दी गयी है | "मुश्किल वक्त कमांडो सख्त " ट्रेनिंग में सुने ये शब्द ही प्रशांत के नींद से बोझिल पैरो को घसीट रहे थे| उसे अभी बहुत सारे काम निपटाने थे | "सर्च आपरेशन एक लम्बा और थकाऊ आपरेशन होता है, कमांडर को हमेशा अलर्ट रहना होता है...." ट्रेनिंग के उस्ताद की आवाज धीरे धीरे दूर होती जा रही थी , नींद और थकान की गहराई में वो सख्त आवाज अब घुलने लगी थी | प्रशांत को ऐसा लगने लगा मानो वह हवा में तैर रहा हो...." साहब जी संभलिये....." हवा के तेज झोंके से प्रशांत हडबडा कर उठ बैठा | दुसरे ट्रैक पर एक ट्रेन धडधडाती हुई गुजर गयी थी |
सूरज ने अपनी लौ थोड़ी और ऊपर सरका दी और धूप में धीरे धीरे गर्मी घुलने लगी | अनमने ढंग से प्रशांत ने एक नजर ट्रेन में अपने आसपास फेका | अधिकांश यात्री जग चुके थे |छोटे बड़े बच्चों ने मिलकर ट्रेन में उधम मचा रखा था | कोच के दूसरे सिरे पर शौचालय के पास यात्री घनत्व कुछ ज्यादा हो गया था | वहां कुछ यात्री चार बंद दरवाजों में से किसी भी एक के खुलने का बेसब्री इंतजार कर रहे थे |बच्चों की धमा चौकड़ी शायद उनके आंतरिक दबाब को बढ़ाये जा रही थी |एक सज्जन अपना आपा खो बैठे -" बंदरों के बच्चे हो क्या ?शांति से बैठ नहीं सकते " .... "बंदरों के नहीं गोरिल्ला के " - एक नटखट बच्चे ने गोरिल्ला की तरह झपटते हुए उनका मुंह चिढाया |प्रशांत के सूखे होठों पर तरल मुस्कान फ़ैल गयी |..."गोरिल्ला "....पर शायद इस शब्द की आंच ने जल्दी ही उस तरलता को सोख लिया |...." फाइट गुरिल्ला लाइक गुरिल्ला "... प्रशांत को लगा जैसे वह ट्रेन में नहीं उस मीटिंग में बैठा हो जहाँ बड़े साहब आँखों से अंगारे बरसाते हुए चिल्ला रहे थे |....." क्या नहीं है तुम्हारे पास , सर पर छत है ..." पास में रेहान बुदबुदाया - "टूटी है " ...." खाने को राशन है "....रेहान फिर बुदबुदाया - " सडा है " ...." पीने को पानी है "... रेहान - " गन्दा है " ...." पैरों में जूते है ..." - " फटे है "...प्रशांत ने रेहान को चिकोटी काटी - "चुप " ..." ये सब कुछ नहीं है उनके पास , तुम्हारे हथियार बेहतर है ,तुम्हारी ट्रेनिंग बेहतर है , फिर क्यों छिपे बैठे हो तुम अपने इस बिल में".... रेहान से रहा नहीं गया, फिर बुदबुदाया - " सर ठीक कह रहे है , बिल ही तो है यह जहाँ हम रहते है "...." बिल से बाहर निकलो , गुरिल्ला से गुरिल्ला की तरह लड़ो ,जाओ जंगलों में घूमो , उन्हें खोजो और मार दो ".. बड़े साहब ने जैसे अपने दांतों से ही चबा कर गुरिल्ला को मार दिया | ...."रंधीर !!" ..." यस सर " रंधीर साहब सावधान हो गए थे | ..." हमारे ऊपर बहुत प्रेसर है , प्लान एन ऑपरेशन ऑफ़ फॉर डेज , गो टू जन्गल्स, कम बैक विथ सम अचीवमेंट्स " ...." हो जायेगा सर" रंधीर साहब ने बुझे हुए स्वर में कहा | कई दिनों से न जाने प्रशांत को क्यों ऐसा लग रहा था कि रंधीर साहब में जो एक आग थी वो धीरे धीरे बुझती जा रही है | पर जिम्मेदारी की हवा से आज वो आग फिर लहक उठी थी | बड़े साहब के जाते ही उनकी आवाज कड़क हो उठी थी .." हम कल से चार दिन के ऑपरेशन पर रवाना होंगे " - रंधीर साहब ने ऑपरेशन की ब्रीफिंग शुरू कर दी | " टरेन कैसा है ? हम नहीं जानते | इंटेलिजेंस इनपुट भी कुछ मिला नहीं है - हमें बस इतना पता है कि हम अपना अगला चार दिन जंगल में बिताने वाले है "- रंधीर साहब ने सब का भविष्य तय कर दिया था | टेबल पर फैले हुए मैप पर तीन निशान लगाने के बाद रंधीर साहब ने आखरी निशान राजपुर पर लगाया - "यहाँ हमारा आखरी ऑपरेशन होगा - घेराबंदी और सर्च -"..फिर.पुरे जोश से भर कर एक साँस में ही रंधीर साहब ने एक नारा जैसा लगाया --" इन चार दिनों में हमारे तीन बड़े दुश्मन होंगे - भूख , प्यास और नींद और तीन बड़े दोस्त होंगे - हथियार, हौसला और हमसाया " उनकी साँस शायद चुक गयी |एक गहरी साँस ले कर उन्होंने फिर से बोलना शुरू किया , पर प्रशांत को लगा जैसे यह आवाज कहीं दूर आसमान से आ रही हो - " आखरी ऑपरेशन के बाद वापस लौटते समय हमें सबसे ज्यादा अलर्ट रहना होगा क्योंकि यही वह समय होगा जब हमारे दुश्मन सबसे ज्यादा ताकतवर होंगे" | प्रशांत ठीक से समझ नहीं पाया कि रंधीर साहब ने किस दुश्मन की बात की , नक्सलियों की या उन तीन दुश्मनों की जिसमे से तीसरे ने उसे फिर से दबोच लिया |पैरों में लिपटा चादर फडफडा रहा था | साइड लोअर बर्थ पर पीठ टिकाये प्रशांत की गर्दन खिड़की की ओर झुक गयी थी और चारो तरफ सन्नाटा पसरने लगा था |
सन्नाटे ने धीरे धीरे पसरते हुए उस सिरे को छू लिया जहाँ कर्ण सिंह की चीख ने उसके सारे तिलस्म को तोड़ दिया ...." साहब जी संभलिये " कर्ण सिंह ने प्रशांत को पीछे से पकड़ कर झकझोरा | प्रशांत होश में आया | अभी तक वह नींद की बेहोशी में चलता जा रहा था | दो कदम आगे एक बड़ा गढ्ढा था जिसमे प्रशांत गिरने ही वाला था अगर वक्त पर कर्ण सिंह ने उसे नहीं बचाया होता |कर्ण सिंह के कंधे पर एक कृतज्ञ हाथ ने उसकी सारी थकावट मिटा दी, वह सक्रिय हो उठा | "साहबजी सामने राजपुर गाँव है , मै अपनी सेक्सन को ले कर आगे बढ़ता हूँ , गांववालों को घरों से निकाल कर मैदान में बैठाता हूँ , आप पीछे से पूरी पार्टी के साथ आकर सर्च की कार्रवाई कीजिये" | प्रशांत ने इशारों से ही स्वीकृति दे दी |प्रशांत अब पुरे होश में था |उसे राजपुर का सर्च करना था |जल्दी जल्दी उसने बची हुई नफरी को आवश्यक निर्देश दिया और राजपुर की ओर बढ़ने लगा |
राजपुर ....जहाँ न तो राज का कोई चिन्ह था और न ही पुर का कोई निशान | " लोकतंत्र "की तरह यह भी अपने खोखले अर्थ को ढोए जा रहा था | प्रशांत को लगा जैसे यह गाँव नहीं बल्कि खानाबदोशों का कोई डेरा हो |मिटटी के टूटे फूटे घरों में आधा पेट भरने लायक राशन - बर्तन थे और आधा तन ढकने लायक कपडे |किसी विपत्ति में अगर उन्हें गाँव छोड़ना भी पड़े तो न तो सामान साथ ले जाने में कोई परेशानी थी और न ही उसे छोड़ देने में |किसी-किसी घर में प्रशांत ने मिटटी की देवीमूर्ती भी देखी थी और लकड़ी का क्रॉस भी |शायद ये लोग अपनी बदहाली मिटाने की प्रार्थना अपने पुराने देवी देवताओं से भी करते थे और नए से भी | पर अभी तक उनकी फरियाद किसी ने नहीं सुनी थी |सीलन और बदबू से भरे घरों की तलाशी करता करता प्रशांत अब थकने लगा था | उसने अनमने ढंग से बाकी का काम पूरा किया और फिर अपनी पूरी पार्टी लेकर वहां पहुँच गया जहाँ कर्ण सिंह ने गांववालों को इकठ्ठा कर रखा था |कर्ण सिंह ने गाँव वालों से पहले ही पूछताछ कर ली थी | कोई शाकिया आदमी उसे नहीं मिला था | प्रशांत के आते ही कर्ण सिंह ने उसे अपने इस शोध कार्य से अवगत कराया - " साहब , इनमे कोई नक्सली नहीं है और ये सभी डरे सहमे गरीब ग्रामीण है | " प्रशांत ने ऐसे सर हिलाया जैसे उसे पहले से ही यह पता हो | वहां समय बिताने के लिए प्रशांत गाँव वालों से बात करने लगा |प्रशांत को मालूम था कि उसे अभी थोडा और इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि दूसरी पार्टी का कमांडर रेहान है और रेहान तब तक तलाशी करता रहेगा जब तक उसे कुछ मिल नहीं जाता | " मिल गया सर " - रेहान की आवाज वायरलेस से छलक गयी | " मै उसे लेकर आपके पास आ रहा हूँ "- रेहान जैसे उड़ कर प्रशांत के पास पहुँच जाना चाहता था |प्रशांत ने देखा थोड़ी दूरी पर रेहान क़ी पूरी पार्टी नजदीक आ रही थी |रेहान आगे आगे चल रहा था , उसके पीछे पूरी पार्टी कोल्हू के बैल क़ी तरह सर झुकाए सुस्त कदमो से चल रही थी | थोडा गौर से देखने पर प्रशांत को लगा जैसे रेहान के लम्बे कद की छाया में लिपटा हुआ एक दस - बारह साल का दुबला पतला लड़का ऐसे चल रहा हो जैसे उसके जिस्म से जान निचोड़ दी गयी हो |नजदीक पहुँचते ही प्रशांत ने पूछा - " कौन है यह लड़का ?" | रेहान क़ी आवाज में घृणा और उपहास बराबर मात्रा में था - " ए नक्सल इन मेकिंग सर " प्रशांत के चेहरे पर अविश्वास की रेखा देख रेहान ने दलील दी - " स्साला तीन दिनों तक देसी कट्टा लेकर नक्सलियों के साथ घूमता रहा है, पूछने पर बताता है कि पार्टी वालों ने बाबा को सौ रूपये दिए थे इसलिए उनकी मजदूरी की थी " | प्रशांत ने लड़के को ऊपर से नीचे तक देखा - " क्यों रे ! क्यों घूमता है उनके साथ "- उत्तर जानते हुए भी प्रशांत ने बस उसकी आवाज सुनने के लिए पूछा | लड़का चुप रहा | पर रेहान से चुप नहीं रहा गया - " इसके मुंह में खून लग चुका है सर ,आज देसी कट्टा उठाने पर सौ रूपये मिले है , कल को ए के फोर्टी सेवेन उठाएगा और हजारों लाखों कमाएगा " | प्रशांत अभी भी उन खाली बदबूदार घरों से बाहर नहीं निकल पाया था इसलिए लाख को अनसुना कर सौ के बारे में सोचने लगा | प्रशांत सोच रहा था कि सौ रुपयों में उन खाली घरों का कौन सा कोना किस सामान से भरा जा सकता है | प्रशांत का गणित गड़बड़ा गया , वह झल्ला उठा - " छोडो , जाने दो इसे " | इसके पहले कि रेहान कुछ कह पाता वायरलेस सेट पर रंधीर साहब की करकदार आवाज उभरी - " प्रशांत ! क्या सर्च समाप्त हो गया है " | हडबडा कर प्रशांत बस इतना कह पाया - " यस सर " | " कुछ मिला क्या ? " - रंधीर साहब शायद हाँ सुनना चाहते थे | " "नहीं सर" - रेहान को आँखों से समझाते हुए प्रशांत ने जबाब दिया | उधर से आदेश मिला - " ठीक है फिर जल्दी आर वी पर पहुँचो , फ़ौज बहुत थक चुकी होगी |" " यस सर "-
सूरज ने अपनी लौ थोड़ी और ऊपर सरका दी और धूप में धीरे धीरे गर्मी घुलने लगी | अनमने ढंग से प्रशांत ने एक नजर ट्रेन में अपने आसपास फेका | अधिकांश यात्री जग चुके थे |छोटे बड़े बच्चों ने मिलकर ट्रेन में उधम मचा रखा था | कोच के दूसरे सिरे पर शौचालय के पास यात्री घनत्व कुछ ज्यादा हो गया था | वहां कुछ यात्री चार बंद दरवाजों में से किसी भी एक के खुलने का बेसब्री इंतजार कर रहे थे |बच्चों की धमा चौकड़ी शायद उनके आंतरिक दबाब को बढ़ाये जा रही थी |एक सज्जन अपना आपा खो बैठे -" बंदरों के बच्चे हो क्या ?शांति से बैठ नहीं सकते " .... "बंदरों के नहीं गोरिल्ला के " - एक नटखट बच्चे ने गोरिल्ला की तरह झपटते हुए उनका मुंह चिढाया |प्रशांत के सूखे होठों पर तरल मुस्कान फ़ैल गयी |..."गोरिल्ला "....पर शायद इस शब्द की आंच ने जल्दी ही उस तरलता को सोख लिया |...." फाइट गुरिल्ला लाइक गुरिल्ला "... प्रशांत को लगा जैसे वह ट्रेन में नहीं उस मीटिंग में बैठा हो जहाँ बड़े साहब आँखों से अंगारे बरसाते हुए चिल्ला रहे थे |....." क्या नहीं है तुम्हारे पास , सर पर छत है ..." पास में रेहान बुदबुदाया - "टूटी है " ...." खाने को राशन है "....रेहान फिर बुदबुदाया - " सडा है " ...." पीने को पानी है "... रेहान - " गन्दा है " ...." पैरों में जूते है ..." - " फटे है "...प्रशांत ने रेहान को चिकोटी काटी - "चुप " ..." ये सब कुछ नहीं है उनके पास , तुम्हारे हथियार बेहतर है ,तुम्हारी ट्रेनिंग बेहतर है , फिर क्यों छिपे बैठे हो तुम अपने इस बिल में".... रेहान से रहा नहीं गया, फिर बुदबुदाया - " सर ठीक कह रहे है , बिल ही तो है यह जहाँ हम रहते है "...." बिल से बाहर निकलो , गुरिल्ला से गुरिल्ला की तरह लड़ो ,जाओ जंगलों में घूमो , उन्हें खोजो और मार दो ".. बड़े साहब ने जैसे अपने दांतों से ही चबा कर गुरिल्ला को मार दिया | ...."रंधीर !!" ..." यस सर " रंधीर साहब सावधान हो गए थे | ..." हमारे ऊपर बहुत प्रेसर है , प्लान एन ऑपरेशन ऑफ़ फॉर डेज , गो टू जन्गल्स, कम बैक विथ सम अचीवमेंट्स " ...." हो जायेगा सर" रंधीर साहब ने बुझे हुए स्वर में कहा | कई दिनों से न जाने प्रशांत को क्यों ऐसा लग रहा था कि रंधीर साहब में जो एक आग थी वो धीरे धीरे बुझती जा रही है | पर जिम्मेदारी की हवा से आज वो आग फिर लहक उठी थी | बड़े साहब के जाते ही उनकी आवाज कड़क हो उठी थी .." हम कल से चार दिन के ऑपरेशन पर रवाना होंगे " - रंधीर साहब ने ऑपरेशन की ब्रीफिंग शुरू कर दी | " टरेन कैसा है ? हम नहीं जानते | इंटेलिजेंस इनपुट भी कुछ मिला नहीं है - हमें बस इतना पता है कि हम अपना अगला चार दिन जंगल में बिताने वाले है "- रंधीर साहब ने सब का भविष्य तय कर दिया था | टेबल पर फैले हुए मैप पर तीन निशान लगाने के बाद रंधीर साहब ने आखरी निशान राजपुर पर लगाया - "यहाँ हमारा आखरी ऑपरेशन होगा - घेराबंदी और सर्च -"..फिर.पुरे जोश से भर कर एक साँस में ही रंधीर साहब ने एक नारा जैसा लगाया --" इन चार दिनों में हमारे तीन बड़े दुश्मन होंगे - भूख , प्यास और नींद और तीन बड़े दोस्त होंगे - हथियार, हौसला और हमसाया " उनकी साँस शायद चुक गयी |एक गहरी साँस ले कर उन्होंने फिर से बोलना शुरू किया , पर प्रशांत को लगा जैसे यह आवाज कहीं दूर आसमान से आ रही हो - " आखरी ऑपरेशन के बाद वापस लौटते समय हमें सबसे ज्यादा अलर्ट रहना होगा क्योंकि यही वह समय होगा जब हमारे दुश्मन सबसे ज्यादा ताकतवर होंगे" | प्रशांत ठीक से समझ नहीं पाया कि रंधीर साहब ने किस दुश्मन की बात की , नक्सलियों की या उन तीन दुश्मनों की जिसमे से तीसरे ने उसे फिर से दबोच लिया |पैरों में लिपटा चादर फडफडा रहा था | साइड लोअर बर्थ पर पीठ टिकाये प्रशांत की गर्दन खिड़की की ओर झुक गयी थी और चारो तरफ सन्नाटा पसरने लगा था |
सन्नाटे ने धीरे धीरे पसरते हुए उस सिरे को छू लिया जहाँ कर्ण सिंह की चीख ने उसके सारे तिलस्म को तोड़ दिया ...." साहब जी संभलिये " कर्ण सिंह ने प्रशांत को पीछे से पकड़ कर झकझोरा | प्रशांत होश में आया | अभी तक वह नींद की बेहोशी में चलता जा रहा था | दो कदम आगे एक बड़ा गढ्ढा था जिसमे प्रशांत गिरने ही वाला था अगर वक्त पर कर्ण सिंह ने उसे नहीं बचाया होता |कर्ण सिंह के कंधे पर एक कृतज्ञ हाथ ने उसकी सारी थकावट मिटा दी, वह सक्रिय हो उठा | "साहबजी सामने राजपुर गाँव है , मै अपनी सेक्सन को ले कर आगे बढ़ता हूँ , गांववालों को घरों से निकाल कर मैदान में बैठाता हूँ , आप पीछे से पूरी पार्टी के साथ आकर सर्च की कार्रवाई कीजिये" | प्रशांत ने इशारों से ही स्वीकृति दे दी |प्रशांत अब पुरे होश में था |उसे राजपुर का सर्च करना था |जल्दी जल्दी उसने बची हुई नफरी को आवश्यक निर्देश दिया और राजपुर की ओर बढ़ने लगा |
राजपुर ....जहाँ न तो राज का कोई चिन्ह था और न ही पुर का कोई निशान | " लोकतंत्र "की तरह यह भी अपने खोखले अर्थ को ढोए जा रहा था | प्रशांत को लगा जैसे यह गाँव नहीं बल्कि खानाबदोशों का कोई डेरा हो |मिटटी के टूटे फूटे घरों में आधा पेट भरने लायक राशन - बर्तन थे और आधा तन ढकने लायक कपडे |किसी विपत्ति में अगर उन्हें गाँव छोड़ना भी पड़े तो न तो सामान साथ ले जाने में कोई परेशानी थी और न ही उसे छोड़ देने में |किसी-किसी घर में प्रशांत ने मिटटी की देवीमूर्ती भी देखी थी और लकड़ी का क्रॉस भी |शायद ये लोग अपनी बदहाली मिटाने की प्रार्थना अपने पुराने देवी देवताओं से भी करते थे और नए से भी | पर अभी तक उनकी फरियाद किसी ने नहीं सुनी थी |सीलन और बदबू से भरे घरों की तलाशी करता करता प्रशांत अब थकने लगा था | उसने अनमने ढंग से बाकी का काम पूरा किया और फिर अपनी पूरी पार्टी लेकर वहां पहुँच गया जहाँ कर्ण सिंह ने गांववालों को इकठ्ठा कर रखा था |कर्ण सिंह ने गाँव वालों से पहले ही पूछताछ कर ली थी | कोई शाकिया आदमी उसे नहीं मिला था | प्रशांत के आते ही कर्ण सिंह ने उसे अपने इस शोध कार्य से अवगत कराया - " साहब , इनमे कोई नक्सली नहीं है और ये सभी डरे सहमे गरीब ग्रामीण है | " प्रशांत ने ऐसे सर हिलाया जैसे उसे पहले से ही यह पता हो | वहां समय बिताने के लिए प्रशांत गाँव वालों से बात करने लगा |प्रशांत को मालूम था कि उसे अभी थोडा और इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि दूसरी पार्टी का कमांडर रेहान है और रेहान तब तक तलाशी करता रहेगा जब तक उसे कुछ मिल नहीं जाता | " मिल गया सर " - रेहान की आवाज वायरलेस से छलक गयी | " मै उसे लेकर आपके पास आ रहा हूँ "- रेहान जैसे उड़ कर प्रशांत के पास पहुँच जाना चाहता था |प्रशांत ने देखा थोड़ी दूरी पर रेहान क़ी पूरी पार्टी नजदीक आ रही थी |रेहान आगे आगे चल रहा था , उसके पीछे पूरी पार्टी कोल्हू के बैल क़ी तरह सर झुकाए सुस्त कदमो से चल रही थी | थोडा गौर से देखने पर प्रशांत को लगा जैसे रेहान के लम्बे कद की छाया में लिपटा हुआ एक दस - बारह साल का दुबला पतला लड़का ऐसे चल रहा हो जैसे उसके जिस्म से जान निचोड़ दी गयी हो |नजदीक पहुँचते ही प्रशांत ने पूछा - " कौन है यह लड़का ?" | रेहान क़ी आवाज में घृणा और उपहास बराबर मात्रा में था - " ए नक्सल इन मेकिंग सर " प्रशांत के चेहरे पर अविश्वास की रेखा देख रेहान ने दलील दी - " स्साला तीन दिनों तक देसी कट्टा लेकर नक्सलियों के साथ घूमता रहा है, पूछने पर बताता है कि पार्टी वालों ने बाबा को सौ रूपये दिए थे इसलिए उनकी मजदूरी की थी " | प्रशांत ने लड़के को ऊपर से नीचे तक देखा - " क्यों रे ! क्यों घूमता है उनके साथ "- उत्तर जानते हुए भी प्रशांत ने बस उसकी आवाज सुनने के लिए पूछा | लड़का चुप रहा | पर रेहान से चुप नहीं रहा गया - " इसके मुंह में खून लग चुका है सर ,आज देसी कट्टा उठाने पर सौ रूपये मिले है , कल को ए के फोर्टी सेवेन उठाएगा और हजारों लाखों कमाएगा " | प्रशांत अभी भी उन खाली बदबूदार घरों से बाहर नहीं निकल पाया था इसलिए लाख को अनसुना कर सौ के बारे में सोचने लगा | प्रशांत सोच रहा था कि सौ रुपयों में उन खाली घरों का कौन सा कोना किस सामान से भरा जा सकता है | प्रशांत का गणित गड़बड़ा गया , वह झल्ला उठा - " छोडो , जाने दो इसे " | इसके पहले कि रेहान कुछ कह पाता वायरलेस सेट पर रंधीर साहब की करकदार आवाज उभरी - " प्रशांत ! क्या सर्च समाप्त हो गया है " | हडबडा कर प्रशांत बस इतना कह पाया - " यस सर " | " कुछ मिला क्या ? " - रंधीर साहब शायद हाँ सुनना चाहते थे | " "नहीं सर" - रेहान को आँखों से समझाते हुए प्रशांत ने जबाब दिया | उधर से आदेश मिला - " ठीक है फिर जल्दी आर वी पर पहुँचो , फ़ौज बहुत थक चुकी होगी |" " यस सर "-